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विमर्श

आईसीएचआर का पोस्टर और विचारहीन बौखलाहट

रजनीश कुमार शुक्ल


आई.सी.एच.आर (भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्) ने आजादी के अमृत महोत्सव पर एक पोस्टर निकाला था। जिसमें पंडित नेहरू का चित्र नहीं है और सावरकर का चित्र है। इसको लेकर वाद-विवाद की एक लंबी शृंखला चली है। जहां कुछ पत्रकारों और कांग्रेस के नेताओं को यह लगा कि एक पोस्टर में नेहरू का चित्र न होने से नेहरूवाद का समूलोच्छेद हो गया तो कुछ राजनेताओ को इस पर आपत्ति थी कि पोस्टर में सावरकर हैं, आखिर हैं तो क्यो हैं? यदि एक पोस्टर में नेहरू का चित्र न होने से इतिहास बदल जाता है तो इतने कमजोर व्‍यक्तित्‍व के नेहरू के पक्ष में कुछ भी नही कहा जा सकता, सिवाय इसके कि कांग्रेस की द्वारा अपने शासन के दौरान सावरकर की जो उपेक्षा की गई उसका मूल्यांकन करना चाहिए। केवल एक पोस्टर से पंडित नेहरू के चित्र की अनुपस्थिति से विकल, व्यथित राजनेता, इतिहासकार और पत्रकार इस बात पर अवश्य सोचें कि सावरकर जैसे स्वतत्रंता सेनानी को इतिहास से गायब करने से इस देश के करोड़ों लोगों को कितनी व्‍यथा हुई होगी। यह पोस्टर के पक्ष मे दलील देने के लिए नहीं लिखा जा रहा है बल्कि इस बात के लिए लिखा जा रहा है कि चन्‍द्रशेखर आजाद को को आतंकवादी, सुभाष चन्‍द्र बोस को तोजो का कुत्‍ता और जापान को नष्ट करने के लिए ब्रिटेन सरकार के साथ खड़े होने की बात करने वालों को महान और उदार बताने पर इस देश के प्रति भक्ति भाव रखने वालों को कितनी पीड़ा हुई होगी। हजारों संस्‍थाएं इस देश में नेहरू के नाम पर हैं। राज्य सरकार और केन्द्र सरकार सबने नेहरू के नाम को जिंदा रखने के अनेक यत्न किये हैं, उसके बाद भी एक पोस्‍टर में न होने से इतिहास बदलने के खतरे की बात तो अणु से ब्रह्मांड तक केवल हम ही हम रहेंगे की भावना की अभिव्‍यक्ति है। भारत में इतिहास हमेशा से विवाद का विषय रहा है। पर एक पोस्‍टर और एक फोटो पर तकरार बेमानी है। यह गैरजरूरी मुद्दों पर हो रही बहस है। जब भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् ने यह स्‍पष्‍ट कर दिया कि अभी और पोस्‍टर आने हैं। सभी पोस्‍टरों पर पंडित नेहरू का चित्र और मौलाना आजाद का चित्र ही हो यह जरूरी नहीं है। इसमें बिस्मिल का, चन्‍द्रशेखर आजाद का चित्र नहीं है। रानी झांसी और तात्या टोपे भी नहीं हैं। ऐसे अनेकों नाम जिनके चित्र होना चाहिए, नहीं हैं। तर्क केवल यह कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का चित्र क्‍यों नहीं है। क्‍यों पर जाएंगें तो बड़ी कठिन स्थिति में पड़ना होगा। हजारो वर्ग मील आजाद भारत की जमीन किसके नेतृत्‍व में गयी इसका उत्‍तर देना पड़ेगा। किसने नेशन इन मेकिंग की अवधारणा बना कर भारत राष्‍ट्र के स्वातंत्र्य समर को बेमानी बनाया। इसका उत्‍तर भी देना पड़ेगा। स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव इस बात के लिए नहीं है कि किसी का राजनैतिक तुष्टीकरण किया जाय। निश्चित रूप से इसलिए भी नहीं कि किसी भी महान व्यक्तित्व को नीचा दिखाया जाय। सावरकर को लांछित करने का योजनाबद्ध, सुनियोजित अभियान चलाने वालों को इस प्रकार की राजशाही सोच से अवश्य बचना चाहिए। क्रान्ति वीरों को आतंकवादी और 1857 के स्वातंत्र्य संग्राम को सिपाही विद्रोह बताने वाले इतिहासकारों को इस बात की शर्म करनी चाहिए कि ऐसा करके उन्‍होंने लाखों लोगों के बलिदान को लांछित किया है। पान्थिक आंदोलन, दंगे और हिंसा से भरे मोपला दंगों को स्वातंत्र्य समर बताने वाले इतिहासकार और केरल के कांग्रेस नेताओं को पोस्टर प्रकरण पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है। भारत की आजादी के साथ विभाजन के वास्तविक गुनाहगारों को भी कोई नैतिक अधिकार नही है कि वे एक पोस्टर को लेकर के किसी विचारधारा पर आक्रमण करें। यह सत्‍य है कि वीर सावरकर के योगदान पर श्रीमती गांधी ने उन्हें भारत के महान सपूतो में से एक बताया था। किन्तु यह भी सत्य है कि बिना अपवाद के सभी कांग्रेस नेताओं ने वीर सावरकर पर गांधी जी की हत्या का मिथ्यारोप लगाया। उन्हीं के शासन काल में न्यायालय द्वारा बरी होने के बाद भी और राज युवराज की यह परंपरा सावरकर का लगातार विरोध करती आ रही है। यह भी उतना ही बड़ा सत्‍य है कि सावरकर के नाम पर पोर्ट ब्‍लेयर हवाई अड्डे का नामकरण किए जाने का कांग्रेस ने पुरजोर विरोध किया था। सावरकर को लांछित करने, अपमानित करने की साजिश 1948 से ही होती आ रही है। इस प्रकार के प्रकरणों को यदि एकट्ठा किया जायेगा तो एक नया इतिहास बनेगा और उसमें केवल धूल और धुआं ही होगा। आई.सी.एच.आर ने यदि पोस्टर वापस ले लिया है तो बात यहीं खत्‍म हो जानी चाहिए। उससे आगे बढ़कर यह कहना कि आई.सी.एच.आर ऐसा करके अपराध कर रही है। ऐसा कहनेवाले लोग इतिहास की अंतिम पंक्ति लिख दी गई है यह कहने की कोशिश कर रहे हैं, जो न तो सत्‍य है, न तो इतिहास का लेखन कैसे होता है इससे उनका परिचय ही है। इसे पूरे प्रकरण में देश के प्रधानमंत्री को घसीटने वाले प्रतिबद्ध राजनेता और इतिहासकार दोनों शायद यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस के कालखंड में इतिहास प्रधानमंत्रियों के इशारे पर लिखा जाता रहा है। ऐसा अर्थ निकालना इतिहास को बदलना ही है। जबकि इतिहास का पुनर्लेखन इतिहास बदलना या इशारे पर इतिहास लिखना नहीं अपितु इतिहास की समीक्षा और नये प्राप्‍त तथ्‍यों के आलोक में इतिहास लेखन में आई त्रुटियों का परिष्‍कार है। लाल किले में ताम्रपत्र गड़वाने वाले दल के लोग जब इस प्रकार की बातें करते हैं तो हास्‍यास्‍पद ही है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् इतिहास की एक स्‍वतंत्र, स्‍वायत्‍त अनुसंधान संस्‍था है। इसके कार्यों को राजनीति के चश्‍मे से देखना स्‍वतंत्र अनुसंधान को रोकने का प्रयास है और ऐसे अनुसंधानों को जो पूर्व में हुए हैं संदेह के दायरे में भी खड़ा करता है। यद्यपि कि पोस्‍टर में नेहरू का न होना सही है ऐसा कोई नहीं मानेगा, किंतु हर पोस्‍टर और इतिहास के हर पन्‍ने पर पहला नाम पंडित नेहरू का ही लिखा जाए, यह जरूरी नहीं है। जब भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् यह कह रहा है तो इसको स्‍वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि नेहरू का भी पोस्‍टर आएगा। यह पोस्‍टर एक पोस्‍टर मात्र ही है, इतिहास का कोई दस्‍तावेज नहीं। अध्‍येता और आमजन शायद इसकी ओर ध्‍यान भी नहीं देते पर जिस प्रकार से अतिवादी आरोपों के साथ हल्‍ला बोला गया, इतिहास के झरोखे से नेहरू की गलतियों की ओर झांकने का प्रयास भी तेज हो गया है। यह अनावश्‍यक विवाद है जिसमें पंडित नेहरू की महान छवि प्रभावित होगी और यह आजादी के नायकों तथा आधुनिक भारत के निर्माताओं के बारे में छिद्रा‍न्‍वेषण की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाला साबित होगा। एक अनुसंधान संस्‍थान के कार्य को केन्‍द्र सरकार विशेषत: प्रधानमंत्री की साजिश बताने के अविश्‍वसनीय आरोपों ने यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस का थिंक टैंक अभी भी आत्‍ममुग्‍धता का शिकार है तथा आत्‍ममुग्‍ध इतिहास से बाहर नहीं आना चाहता। जिसका थोड़ा नुकसान देश की सशक्‍तता को होगा तो बड़ी क्षति स्‍वयं कांग्रेस को होगी। अभी बहुत कुछ नहीं बिगड़ा है। प्रतिबद्ध पत्रकार और एकपक्षीय इतिहासकार सच के दूसरे हिस्‍से को भी सामने आने दें और उसकी ऐतिहासिक साक्ष्‍यों के आधार पर समीक्षा करें। इतिहास के उस भाग को जो अभी भी अंधेरे में है सामने लाने का कार्य इतिहासकार की जिम्‍मेदारी है, उसको आने देने से रोकने के लिए संस्‍थाओं पर आक्रमण करना इस देश के लिए ठीक नहीं है और कांग्रेस के लिए तो विध्‍वंसकारी ही है।


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